क्या दहेज उचित है ?


दहेज प्रथा एक अभिशाप

हमारे समाज में कुप्रथाएं हमें देखने को मिलती है। सती प्रथा जैसी कुप्रथा ओं का तो अंत हो गया  लेकिन कई कुप्रथा ऐसी है जो वर्तमान समय में भी विद्यमान हैं उनमें से दहेज प्रथा बहुत ही ज्यादा खतरनाक है जो जो कि शिक्षित समाज के अंदर भी पाई जा रही हैं ।दहेज प्रथा नें अपना इतना विकराल रूप बना लिया है कि बेटी के जन्म पर भी एक माता पिता को विचार करना पड़ता है और  बेटी के विवाह के चिंता सताने लगती है जिस कारण से  हमारे समाज के लिए दहेज प्रथा को अभिशाप माना जा रहा है।

तालिका
  • दहेज प्रथा क्या है?
  • दहेज प्रथा का दुष्परिणाम
  • सरकार द्वारा उठाया गया कदम: दहेज निषेध अधिनियम
  • दहेज प्रथा का समाधान
  • एक महान संत की दहेज प्रथा को जड़ से खत्म करने में अहम भूमिका

दहेज प्रथा क्या हैं?

दहेज  ऐसी लेनदेन हैं जो विवाह के अवसर पर वधू पक्ष से ली जाती है जिसे अनेक तरीकों से दिया जाता है गहनों के रूप में सामग्री के रूप में और पैसों के रूप में । 
दहेज प्रथा


दहेज प्रथा का दुष्परिणाम

लड़कियों की हत्या - 

दहेज प्रथा ने वर्तमान समय में इतना विकराल रूप ले लिया है इसकी वजह से कई माता-पिता तो लड़कियों के जन्म से ही डरने लगे हैं जैसे ही लड़कियों का जन्म होता है , तो वह उन्हें मार देते हैं ।विवाह के बाद ससुराल पक्ष दहेज की मांग पूरी ना होने पर बहू को प्रताड़ित करते हैं और आत्महत्या करने पर मजबूर कर देते हैं।  

 ‌ऋणग्रस्तता -

 दहेज प्रथा नें बेटी को पिता के लिए एक बोझ बना दिया है दहेज प्रथा की वजह से पिता को ऋण लेना पड़ता है और वह ऋणग्रस्त हो जाता हैं।   


बहुपत्नी विवाह-

 दहेज प्रथा ने व्यक्ति को लालची बना दिया है। जिसकी वजह से वह अनेक विवाह कर लेता है। और बहुत प्रथा को बढ़ावा देते हैं।       
    सरकार द्वारा उठाए गए कदम: दहेज निषेध अधिनियम


दहेज निषेध अधिनियम 1961 के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति दहेज लेता है या लेने देने में मदद करता है तो उसे 5 वर्ष की सजा और 15000 का जुर्माना  देना होगा दहेज के लिए परेशान करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए ,पति और रिश्तेदारों द्वारा संपत्ति अथवा अनमोल वस्तुओं के लिए गलत तरीके से मांग के मामले से संबंधित है के अंतर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है धारा 406 के अंतर्गत लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकता है यदि लड़की को उसका धन लौटाने के लिए मना करते हैं।                                 

 दहेज प्रथा का समाधान                  

शिक्षा

 दहेजप्रथा को खत्म करने के लिए प्रथम जरूरत होती है शिक्षा की शिक्षा के अंदर उन्हें दहेज प्रथा से होने वाले समस्याओं को बताना होगा  और समाज में फैली कुप्रथाओ के प्रति जागरूक करना होगा। 
          

  आध्यात्मिक ज्ञान


 आध्यात्मिक ज्ञान की कमी की वजह से व्यक्ति दहेज लेना अपनी शान समझता है जब उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान का पता लगेगा तो उन्हें पता चलेगा कि दहेज लेने पर उन्हें अगले जन्म में उसे चुकाना होगा उस समय उन्हें बहुत पीड़ा उठानी पड़ेगी जब उन्हें इस प्रकार आध्यात्मिक ज्ञान होगा तो वह दहेज लेने की कभी नहीं सोचेंगे।     

बेटियों को आत्मनिर्भर बना कर

दहेज प्रथा को खत्म करने के लिए बेटियों को शिक्षित करके उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाए ताकि वह स्वयं इस कुप्रथा को खत्म करने में अहम भूमिका निभाए। 

अंतरजातीय विवाह

अंतरजातीय विवाह  भी दहेज प्रथा को खत्म करने में सहायक के रूप में कार्य करता है,लेकिन इसमें इस बात का ध्यान रखा जाए कि विवाह माता-पिता और बच्चों की पसंद से हो ताकि आगे जाकर इसमें किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़े। 


  विवाह का तरीका बदला जाए


वर्तमान समय में फिल्मी दुनिया को देखकर समाज में विवाह का तरीका पूर्ण रूप से बदल गया है दिखावे के लिए व्यक्ति फिजूलखर्ची करता है जिस वजह से वह ऋणग्रस्त  हो जाता है तो विवाह की जो तरीका है उसे साधारण किया जाए जिस तरीके से  इसमें ना अधिक समय की बर्बादी हो ना ही धन की बर्बादी हो।
                             


  एक महान संत का दहेज प्रथा को जड़ से खत्म करने में  भूमिका


वर्तमान समय में  अखबारों  और सोशल मीडिया के माध्यम से देखने में आया है कि  आध्यात्मिक ज्ञान ने दहेज प्रथा को खत्म करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है देखने में आया कि संत रामपाल जी महाराज के अनुयाई उनके सत्संग से प्रभावित होकर और उनकी पुस्तक को पढ़कर दहेज रहित विवाह कर रहे हैं जो कि बहुत ही सराहनीय बात है।
संत रामपाल जी  महाराज द्वारा लिखित पुस्तक जीने की राह  को  पढ़ कर दहेज रहित विवाह किया और समाज को एक नई दिशा दी।

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